NATO की सदस्‍यता को लेकर क्‍यों उतावला है फ‍िनलैंड? क्‍या रूस यूक्रेन जंग विश्‍व युद्ध में हो सकता है तब्‍दील

नई दिल्‍ली। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच एक बार फ‍िर फ‍िनलैंड सुर्खियों में है। फ‍िनलैंड ने नाटो में शामिल होने की घोषणा कर दी है। फ‍िनलैंड की प्रधानमंत्री सन्‍ना मारिन और राष्‍ट्रपति सौली नीलिस्‍टो ने गुरुवार को कहा कि वह नाटो की सदस्‍यता के लिए जल्‍द आवेदन दाखिल करेंगे। इस बयान के बाद रूस यूक्रेन जंग में एक नाटकीय मोड़ आ गया है। फ‍िनलैंड को लेकर नाटो और रूस आमने-सामने आ गए हैं। रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेश्कोव ने कहा कि अगर फिनलैंड नाटो में शामिल होता है तो उसे नतीजे भुगतने होंगे। फिनलैंड के कदम से यूरोप में स्थिरता और सुरक्षा में मदद नहीं मिलेगी। बता दें कि रूस की फिनलैंड के साथ 1340 किलोमीटर सीमा लगती है। इस बीच फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के कदम का स्वागत किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या रूस का अगला निशाना फ‍िनलैंड बन सकता है। अगर रूस फ‍िनलैंड पर हमला करता है तो क्‍या तीसरे विश्‍व युद्ध की दस्‍तक हो सकती है। आइए जानते हैं इस मसले पर क्‍या है एक्‍सपर्ट की राय।

यूक्रेन में असुरक्षा की भावना बढ़ी

इसके पूर्व भी रूस ने नाटो को चेतावनी दी थी कि अगर स्वीडन और फ‍िनलैंड नाटो में शामिल होंगे तो रूस यूरोप के बाहरी इलाके में परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात कर देगा। सामरिक रूप से फ‍िनलैंड रूस के लिए बेहद उपयोगी है। फिनलैंड रूस के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है। ऐसे में रूस अपनी जंग का विस्‍तार कर सकता है। विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन जंग के बाद पश्चिमी देशों में कहीं न कहीं एक असुरक्षा की भावना बढ़ी है। खासकर फ‍िनलैंड और स्‍वीडन जो पहले नाटो की सदस्‍यता का विरोध कर रहे थे, अब वह समर्थन में उतर आए हैं। उन्‍होंने कहा कि यह बदलाव यूक्रेन पर हमला और रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन की आक्रामकता का परिणाम है। इसका यूक्रेन के पड़ोसी देशों में यह संदेश गया है कि पुतिन की आक्रामकता का रुख कुछ भी कर सकता है। प्रो पंत ने कहा कि अब लोगों के अंदर एक भय है कि अगर रूस ने यूक्रेन की तरह उनके देश में हमला किया तो क्‍या होगा। उन्‍होंने कहा कि यूक्रेन को भले ही पश्चिमी देशों और अमेरिका से आर्थिक और सैन्‍य सहयोग के साथ नैत‍िक समर्थन मिल रहा है, लेकिन नाटो में शामिल नहीं होने के कारण वह युद्ध में सीधे तौर पर मदद नहीं कर सकते।

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