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बार एसोसिएशन ने सीजेआई को यह पत्र शीर्ष कोर्ट के समक्ष एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से रखी गई याचिका के जवाब में लिखा है। उक्त याचिका में नुपुर के मामले में की गई जजों की टिप्पणियों को वापस लेने के लिए उचित आदेश या निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है।
पूर्व भाजपा नेता नुपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई टिप्पणी को लेकर उठा विवाद नहीं थम रहा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने नुपुर शर्मा की अलग-अलग राज्यों में दर्ज मामलों को एकसाथ जोड़ने की याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणियां की थीं। इन्हीं टिप्पणियों को वापस लेने के लिए मांग करते हुए मंगलवार की सुबह जहां पूर्व जजों और पूर्व नौकरशाहों के समूह ने सीजेआई एनवी रमण को पत्र लिखा।
वहीं शाम होते-होते अब बार एसोसिएशन ने भी इसके जवाब में सीजेआई को एक पत्र लिखकर उक्त समूह मांग को ठुकरा देने का आग्रह किया। बार एसोसिएशन का कहना है कि नुपुर के मामले में की गई जजों की उक्त टिप्पणियों को वापस नहीं लिया जाना चाहिए। क्योंकि ये टिप्पणियां केवल अवलोकन हैं।
एआईबीए ने कहा, टिप्पणियां नहीं हटाई जाएं
ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) ने अपने अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता आदिश सी अग्रवाल के माध्यम से सीजेआई को लिखे पत्र में कहा है कि उन प्रतिकूल टिप्पणियों को वापस लेने के लिए दायर किसी भी पत्र या याचिका का संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए। इसके साथ ही बार एसोसिएशन ने यह भी लिखा है कि किसी भी मामले की सुनवाई के दौरान जज वकीलों के साथ जुड़ते हैं। वकीलों के साथ बातचीत करते समय न्यायाधीशों के लिए खुला होना, अवलोकन करना और सुझाव देना स्वाभाविक है।
बार निकाय ने सीजेआई रमण को लिखे पत्र में कहा कि टिप्पणियों को हटाने का सवाल भले ही अप्रासंगिक हो, अपितु यह पैदा ही नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये टिप्पणियां केवल अवलोकन हैं। पत्र में कहा गया है कि एआईबीए माननीय न्यायाधीशों द्वारा व्यक्त विचारों की सराहना करता है, क्योंकि वह एक अनुभवी नेता और एक वकील (नुपुर शर्मा) द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले के संबंध में सुनवाई के दौरान की गई थीं।
एआईबीए का यह पत्र सीजेआई को ऐसे दिन मिला है जब उच्च न्यायालय के 15 पूर्व न्यायाधीशों और नौकरशाहों के एक समूह ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट नुपुर शर्मा के खिलाफ अपनी उन टिप्पणियों को वापस ले, जिनसे उसने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है। दरअसल, नुपुर शर्मा अपने वकील के माध्यम से पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच के समक्ष पहुंची थीं।
वह चाहती थीं कि पैगंबर को लेकर की गई उनकी टिप्पणी के बाद उनके खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों में दर्ज हुए मामलों को एक साथ जोड़ दिया जाए। इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने 1 जुलाई को हुई सुनवाई में नुपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई थी।
फटकार के साथ यह भी कहा था कि उनके बयान ने पूरे देश में आग लगा दी है और देश में जो हो रहा है उसके लिए वह अकेले ही जिम्मेदार हैं। विभिन्न राज्यों में दर्ज प्राथमिकी को जोड़ने के लिए याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा था कि नुपुर शर्मा ने यह बयान या तो सस्ते प्रचार, राजनीतिक एजेंडे या कुछ नापाक गतिविधियों के लिए दिया था।
नुपुर शर्मा को निष्पक्ष सुनवाई का मौका देने की मांग
पूर्व जजों और पूर्व नौकरशाहों का समूह सुप्रीम कोर्ट की इन्हीं सख्त टिप्पणियों को वापस लेने और हटाने की मांग कर रहा है। जबकि बार एसोसिएशन चाहता है कि इन्हें वापस नहीं लेने का आग्रह किया है। इधर, एक सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करने वाले दिल्ली निवासी अजय गौतम ने भी सुप्रीम कोर्ट में पत्र के माध्यम से याचिका दायर की है, जिसमें सीजेआई से नुपुर शर्मा के मामले में अवकाशकालीन पीठ के जजों की टिप्पणियों को वापस लेने के लिए उचित आदेश-निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है। गौतम का कहना है कि इससे नुपुर शर्मा को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना चाहिए।