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कर्नाटक के चर्चित हिजाब विवाद पर SC ने सुनाया फैसला, दोनों जजों की राय अलग, अब होगी बड़ी बेंच में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हिजाब विवाद मामले में फैसला दे दिया है। दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। वहीं, जस्टिस धूलिया ने हाईकोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद्द कर दिया है। इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच करेगी।

Network Today

सुप्रीम कोर्ट में आज 13 अक्तूबर, 2022 को कर्नाटक हिजाब विवाद पर फैसला सुनाया गया। कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब के साथ प्रवेश पर बैन के इस मामले में जस्टिस धूलिया और जस्टिस हमेंत गुप्ता की बेंच ने दोनों पक्ष का तर्क सुनते हुए 10 दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 सितंबर को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो सुनाया लेकिन दोनों ही जजों की राय मामले पर अलग-अलग सामने आई है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए बैन के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया, वहीं दूसरे जज सुधांशु धूलिया की पीठ ने उनसे उलट राय जाहिर की है।

मुख्य न्ययाधीश के पास जाएगा मामला
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि इस मामले को अब उचित दिशा के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया है। इस मामले पर याचिकाकर्ता पक्ष के वकील, एडवोकेट, एजाज मकबूल ने कहा कि कोर्ट के आदेश का ऑपरेटिव हिस्सा कहता है कि मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक बड़ी बेंच या किसी अन्य बेंच के गठन के लिए रखा जाना चाहिए। याचिकाकर्ता पक्ष के वकील आफताब अली खान ने भी कहा कि आज का फैसला एक खंडित फैसला है। जिसे देखते हुए बेंच ने इसे बड़ी बेंच को रेफर कर दिया है। यानी की अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एक बड़ी बेंच का गठन कर सकते हैं, जो इस मामले पर आगे की सुनवाई करेगी।

सुनवाई में इन्होंने दिए तर्क
कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब के साथ प्रवेश पर बैन पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर 10 दिनों में याचिकाकर्ता पक्ष के 21 वकीलों और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज, कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने प्रतिवादियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच के समक्ष अपने तर्क दिए।
जस्टिस धूलिया ने ये तर्क दिए
जस्टिस हिमांशु धूलिया ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि इस विवाद में आवश्यक धार्मिक अभ्यास की पूरी अवधारणा जरूरी नहीं थी। हाईकोर्ट ने इस मामले पर गलत रास्ता अपनाया। यह पूरी तरह से अपनी पसंद और अनुच्छेद 14 और 19 का मामला है। इन क्षेत्रों की लड़कियां पहले घर का काम करती है फिर स्कूल जाती हैं। मेरे मन में सबसे बड़ा सवाल था बालिकाओं की शिक्षा। क्या हम उसके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? मेरे मन में यही सवाल था। मैंने 5 फरवरी के सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए प्रतिबंध हटाने के आदेश दिए हैं। मैंने सम्मानपूर्वक मतभेद किया है। यह केवल अनुच्छेद 19, और 25 से संबंधित मामला था। यह पसंद की बात है, कुछ ज्यादा नहीं और कुछ कम नहीं।

जस्टिस हेमंत गुप्ता ने क्या कहा?
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने प्रतिबंध को सही ठहराते हुए कहा कि हमारी राय अलग है। मेरे आदेश में 11 सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या छात्रों को अनुच्छेद 19, 21, 25 के तहत वस्त्र चुनने का अधिकार दिया जा सकता है? अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है? व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की व्याख्या किस तरह से की जाए?  क्या इस मामले को संविधान बेंच को भेजा जाए?  क्या कॉलेज मैनेजमेंट छात्रों के यूनिफॉर्म पर या हिजाब पहनने को लेकर कोई फैसला कर सकता है? क्या सरकार के आदेश से मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है? क्या छात्र अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है क्योंकि इस्लाम के तहत आवश्यक धार्मिक अभ्यास का सही हिस्सा पहन रहा है? क्या सरकारी आदेश शिक्षा तक पहुंच के उद्देश्य को पूरा करता है? मेरे अनुसार उत्तर अपीलकर्ता के खिलाफ है। मेरे अनुसार उत्तर अपीलकर्ता के विरुद्ध है। मैं अपील खारिज करता हूं। अलग-अलग राय को देखते हुए मामले को उचित दिशा-निर्देशों के लिए सीजेआई के समक्ष रखा जाए।
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