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ईश्वर का स्मरण् का होना यही जीवन का दर्शन: मिथिलेश नन्दिनीशरण

विचारो का मंथ ही समुद्र मंथन है साधक अपने र्हदय का मंथन करता है

NETWORK TODAY.IN
कानपुर नगर । बाबा जागेश्वर धाम नवाबगंज मे पुरूषोत्तम मास के अवसर पर विश्व कल्याण की कामना के साथ 20 मई से 30  मई 2018  तक चलने वाले श्रीमद भगवतकथा कथा सप्ताह के पंचम दिवस में  वैदिक मत्रांेउच्चार के साथ श्रीघाम अयोघ्या से पघारे संत शिरोमणि  मिथिलेश नन्दिनीशरण  महाराज व चित्रकूट से परीक्षित के रूप मे पधारे आचार्य श्री नवलेश जी , ऋषिकेश से विज्ञानानंद जी महाराज ,अयोध्या से संत शिरोमणि फलाहारी जी महाराज ,लक्ष्मण शिला अयोध्या से पधारे आचार्य मैथलीशरण महाराज ;क़िलाधीशद्धजी के पावन सानिध्य में 51 आचार्यों द्वारा भागवत कथा का मूल पाठ तथा अनुष्ठान महाराज की अमृतवाणी के साथ ख्योरा नवाब गंज स्थित जागेश्वर घाम मंदिर प्रांगण में  आज पांचवे दिवस सम्पन्न हुआ  । संकीर्तन करने से प्रभू को शीघ्र और सहज सरल ठंग से प्रसन्न किया जा सकता है श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव नाम के मंत्र से अंतरंग शक्ति जाग्रत होती है तथा ग्रह क्लेश की समाप्ती होती है। भागवत परम हंसो की संहिता है सत्य में संत बैठता है और चित्त में भगवत बैठता है आनन्द में श्री मद्भागवत का श्रोता बैठता है उक्त उदगार आज भगवत संत शिरोमणि  मिथिलेश नन्दिनीशरण जी महाराज ने व्यक्त किये। व्यास श्री ने कहा कि सतयुग में  भगवान गरूण की सवारी कर आते है व त्रेता युग के भगवान हनुमान जी के कघों पर बैठ कर आते है द्वापर में अर्जुन के रथ पर बैठ कर तथा कलयुग में भगवान न गरूण न हनुमान न अर्जुन के रथ पर बैठते है । वो ज्ञानी की पीठ पर बैठ भावुक वक्ता की जीव्हा पर बैठकर सरल श्रोता के ह्रदय में बैठ कर कानों के द्वारा प्रवेश करते है। ईश्वर का अवतार दो ही कारणों से होता है पहला जब संसार में पाप अधिक बढ़ जाता है दूसरा जब पुण्य की अधिक्ता हो जाये इस कलिकाल युग के इस चरण में पाप और पुण्य का प्रतिशत लगभग बराबर है जहां पाप,कुकृत्य ,अत्याचार, शोषण, भ्रष्टाचार की घटनाऐं बढी़ है तो दूसरी तरफ पौराणिका काल से अबतक धर्मिक अनुष्ठानों के आयोजनो के कारण ही इस धरा पर होने वाली प्रलय की विनाश लीला से प्रभू ने बचाया है । -श्रीमद्भागवत में ‘‘गज ग्राह’’ की कथा सुनाकर श्रोताआं को भाव बिभोर कर दिया श्री महाराज कहते है कि मानो कि जाीव ही गज है और काल ही ग्राह हैआज जब जीव काल के गाल में फं़सता है तब प्रभू को याद करता है तब उस जीव की करूण पुकार सुन कयणाका दयानिधान काल यानि ग्राह का वध कर जीव यानि गज दोनो का ही उद्धार कर देते है । -विचारो का मंथ ही समुद्र मंथन है साधक अपने र्हदय का मंथन करता है तब बिष अर्थत बुराई निकलती है काम क्रोध लाभ मोह रूपी अनेक बस्तुऐ निकलती है लेकिन अगर हम सबको एक किनारे कर देे तब बाद में अमृत अर्थात परमात्म तत्व की प्राप्ती होती है.उक्त कार्यक्रम मे प्रमुख रूप से ब्रम्हाण्डोत्सव वैदिक विज्ञान मंडल के संरक्षक व कार्यक्रम के संयोजक आचार्य श्री उमेश दत्त शुक्ल जी व आचार्य श्री कुमार गौरव शुक्ल योगेश भसीनए वरुण भसीन अनूप द्विवेदी  दीपक तिवारी कौस्तुभ शुक्ल विजय सिह कमल मिश्र आदि लोग मौजूद रहे।

 

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