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7 सालों में 43 बच्चे और 59 बच्चियां हुईं मिसिंग, अब तक नहीं लगा सुराग

Network Today

कानपुर में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुए सुरेश मांझी ने जो आपबीती बताई, उसने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिए। सुरेश को किन परिस्थितियों में वापस छोड़ा गया, इस पर पुलिस जांच कर रही है। लेकिन, कानपुर में मिसिंग बच्चों के आंकड़े ह्यूमन ट्रैफिकिंग के बड़े रैकेट की ओर इशारा कर रहे हैं।

आखिर कहां गए ये गायब बच्चे

स्पेशल जूविनाइल पुलिस यूनिट के आंकड़ों पर गौर करें तो कानपुर में बीते 7 सालों में 18 साल से कम आयु के 43 बच्चे और 59 बच्चियां अब तक मिसिंग हैं। पुलिस भी इनका कोई पता नहीं लगा सकी है। इन बच्चों का क्या हुआ, किसी को भी कुछ नहीं मालूम है।

यूनिट के इंचार्ज SI सूरज चौहान के मुताबिक, 2022 में अक्टूबर तक

179 लोगों की मिसिंग रिपोर्ट दर्ज की गई है। इसमें 46 बच्चे घर से नाराज होकर गए थे और बाद में लौट आए। 111 बच्चों को पुलिस ने बरामद किया है। मिसिंग 179 में अक्टूबर तक 157 बच्चों को बरामद किया जा चुका है। 22 अभी भी लापता हैं।

2012 में हुई स्पेशल यूनिट की स्थापना
कानपुर समेत प्रदेश में 18 साल से कम आयु के बच्चों के मिसिंग केस की जांच के लिए स्पेशल जूविनाइल पुलिस यूनिट की स्थापना की गई थी। IPC-363 में गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज होने के बाद यूनिट मिसिंग बच्चों की जांच शुरू करती है।

हर चौराहे पर फैला है रैकेट
कानपुर के हर बड़े चौराहे पर छोटे बच्चे से लेकर महिलाएं तक भीख मांगती हुईं दिख जाएंगी। कुछ बच्चे मासूमियत से पैसे मांगते हैं तो कुछ गाड़ी पोछने लग जाते हैं। ये बच्चे कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं, कोई नहीं जानता है। चौराहों पर पुलिस तैनात होने के बाद भी ये खुलेआम भीख मांगते हैं और इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है।

कानपुर की बात करें तो विजय नगर, बड़ा चौराह, परेड, रावतपुर तिराहा, फजलगंज चौराहा समेत अन्य चौराहों पर दर्जनों बच्चे भीख मांगने के लिए खड़े हो जाते हैं।

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