Poonch Attack: इसलिए चीन में बनी स्टील की गोलियां दाग रहे आतंकी, अफगानिस्तान से कश्मीर पहुंची ये खास बंदूकें!

Neywork Today

Updated Mon, 06 May 2024 -21:07PM IST

2017 में पुलवामा के लेथपोरा स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ का पहली बार इस्तेमाल हुआ था। आर्मी या किसी अन्य फोर्स में ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ का इस्तेमाल, गैर-कानूनी है। यहां तक कि ‘नाटो’ ने भी स्टील की गोलियों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। चीन और पाकिस्तान में ये गोलियां प्रयोग में लाई जाती हैं।

जम्मू कश्मीर में पुंछ के सुरनकोट में आतंकियों ने वायु सेना के वाहन पर घात लगाकर जो हमला किया है, उसमें स्टील की गोलियों का इस्तेमाल हुआ है। ये गोलियां, अमेरिका निर्मित M4 कार्बाइन असाल्ट राइफल और एके-56 राइफल के द्वारा दागी गई हैं। सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों ने बताया, गत वर्ष भी पुंछ में भारतीय सेना के वाहन पर हमला करने के लिए पाकिस्तान के आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ की जम्मू-कश्मीर में सक्रिय प्रॉक्सी विंग ‘पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट’ (पीएएफएफ) ने चीन में निर्मित स्टील की गोलियों का इस्तेमाल किया था। आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही स्टील की गोलियां यानी ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ (एपीआई) का निर्माण चीन में हो रहा है। स्टील की गोली का वार झेलने की क्षमता ‘लेवल-4’ बुलेट प्रूफ कवच में होती है। भारतीय सुरक्षा बलों के ज्यादातर बुलेटप्रूफ वाहन, मोर्चा, जैकेट और पटका, ‘लेवल 3’ श्रेणी के होते हैं।

2017 में पुलवामा के लेथपोरा स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ का पहली बार इस्तेमाल हुआ था। आर्मी या किसी अन्य फोर्स में ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ का इस्तेमाल, गैर-कानूनी है। यहां तक कि ‘नाटो’ ने भी स्टील की गोलियों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। चीन और पाकिस्तान में ये गोलियां प्रयोग में लाई जाती हैं। पिछले साल पुंछ में हुए जिस आतंकी हमले में सेना के पांच जवान शहीद हुए थे, वहां भी आतंकियों ने इन्हीं गोलियों का इस्तेमाल किया था। 7.62 एमएम स्टील कोर की गोलियां चीन में निर्मित हैं। वहां से इन गोलियों को पाकिस्तान में लाया जाता है। उसके बाद वहां के सक्रिय आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा, आईएसआई की मदद से स्टील की गोलियों को सीमा पार भेजने का प्रयास करते हैं। आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी की मारक क्षमता तीन सौ मीटर तक बताई जाती है।

सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, 2021 में अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद ‘नाटो’ सेनाओं के अनेक हथियार और गोला-बारूद वहीं पर छूट गए थे। तालिबान के कब्जे में आए वे घातक हथियार, अब पाकिस्तान के रास्ते जम्मू-कश्मीर तक पहुंच रहे हैं, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। गत वर्ष के पुंछ हमले के दौरान यह बात सामने आई थी कि तालिबान के पास मौजूद अमेरिकन M16 राइफल और M4 कार्बाइन जैसे हथियार, जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकी संगठन ‘लश्कर- ए-तैयबा’ और ‘जैश-ए-मोहम्मद’ के हाथ लगे हैं।

अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों के वापस लौटने के बाद ’85 बिलियन डॉलर’ के एयरक्रॉफ्ट, बख्तरबंद गाड़ियां, रॉकेट डिफेंस सिस्टम, मशीन गन और असॉल्ट राइफल सहित भारी मात्रा में गोला बारूद पर तालिबान का कब्जा हो गया था। तब अमेरिका ने दावा किया था कि उसने तालिबान के हाथ लगे अपने अत्याधुनिक एयरक्रॉफ्ट, बख्तरबंद गाड़ियां व रॉकेट डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर दिया है।

इसके बावजूद अफगानिस्तान में ‘चार सी-130 ट्रांसपोर्ट्स एयरक्राफ्ट, 23 एम्ब्रेयर ईएमबी 314/ए29 सुपर सुकानो, 28 सेसेना 208, 10 सेसेना एसी-208 स्टाइक एयरक्रॉफ्ट’ फिक्सड् विंग एयरक्रॉफ्ट बताए गए हैं। इनके अलावा 33 एमआई-17, 33 यूएच-60 ब्लैकहॉक व 43 एमडी 530 हेलीकॉप्टर भी हैं। अमेरिकी 22174-ह्मवे, 634 एमआई 117, 155 एमएक्सएक्स प्रो माइन प्रूफ व्हीकल, 169 एमआई 13 आर्म्ड पर्सनल कैरियर, 42000 पिक अप ट्रक एंड एसयूवी, 64363 मशीन गन, 8000 ट्रक, 162043 रेडियो, 16035 नाइट गॉगल, 358530 असॉल्ट राइफल, 126295 पिस्टल और 176 आर्टलरी पीस भी तालिबान के कब्जे में होने की बात सामने आई थी

 

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