
लखनऊ । हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा, “ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग को दूसरा पक्ष फव्वारा कह रहा है। अगर ऐसा है तो वह फव्वारा चलाकर दिखा दें। फव्वारा है तो वहां वाटर सप्लाई का पूरा सिस्टम भी होगा। ऐसे में प्रतिवादी पक्ष को जांच पर ऐतराज क्यों है?” उन्होंने यह भी दावा किया कि नंदी महाराज के सामने से व्यासजी के कक्ष से शिवलिंग तक रास्ता जाता है। कोर्ट से वहां खुदाई कराने की मांग की गई है।
वाराणसी कचहरी में बुधवार को तमाम अधिवक्ता हड़ताल पर रहे। इस कारण कोर्ट ने चैंबर में ही बैठकर सभी पक्षों की बाते सुनीं। आवेदन लिया और सुनवाई की तिथि गुरुवार को नियत कर दी। इस बीच मंगलवार को मीडियाकर्मियों और वकीलों से झड़प के बाद देश-विदेश से आए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों को प्रवेश नहीं दिया गया था। इधर, ज्ञानवापी मामले में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी पक्ष ने आपत्ति दाखिल करने के लिए दो दिन का समय मांगा। मसाजिद कमेटी की ओर से ये दलील दी गई है कि उनके पक्ष के वकील अभय यादव व्यक्तिगत कारणों से व्यस्त हैं। साथ ही आज बनारस बार एसोसिएशन के वकील एक दिन की हड़ताल पर हैं। अदालत ने आवेदन को स्वीकार करते हुए आपत्ति दाखिल करने के लिए समय दिया।
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद से जुड़े अधिवक्ता नित्यानंद राय लंबे वक्त से काशी के इतिहास पर रिसर्च करते रहे हैं। नित्यानंद राय कहते हैं कि औरंगजेब के फरमान का प्रमाण 1965 में प्रकाशित काशी के एक गजेटियर में भी मिलता है, जिसे किसी शहर के इतिहास का सबसे प्रमाणिक इतिहास माना जाता है। इसके अलावा इतिहास की किताबों में भी औरंगजेब के फरमान का उल्लेख मिलता है।
औरंगजेब के समकालीन इतिहास पर आधारित ग्रंथ मआसिर ए आलमगीरी में मुहम्मद साफी मुस्तइद खां ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के फरमान का उल्लेख किया है। मुहम्मद साफी मुस्तइद खां मुगल साम्राज्य के वजीर इनायतुल्ला खान का मुंशी था और उसने औरंगजेब के पूरे वक्त की घटनाओं का उल्लेख इस किताब में किया था। मआसिर ए आलमगीरी के मुताबिक, औरंगजेब ने 8-9 अप्रैल 1669 को अपने सूबेदार अबुल हसन को फरमान जारी किया था कि वो जाए और काशी के मंदिरों को तोड़े। इस फरमान के बाद सितंबर 1669 में अबुल हसन ने औरंगजेब को अपनी जवाबी चिट्ठी में लिखा कि मंदिर तोड़ दिया गया है और वहां एक मस्जिद बना दी गई है।