
नई दिल्ली: यूक्रेन युद्ध के बीच भारत दो महाशक्तियों अमेरिका और रूस के बीच बुरी तरह से फंस गया था। एक तरफ भारत का वर्षों से घनिष्ठ मित्र रहा रूस था तो दूसरी ओर सुपरपावर अमेरिका था जो चीन की दादागिरी के खिलाफ बनाए गए क्वॉड में भारत का सहयोगी देश है। अमेरिका ने तो रूस से तेल खरीदने पर भारत को धमकी तक दे दी। अमेरिका की धमकी के बाद भी मोदी सरकार न केवल ‘गुटनिरपेक्षता’ की नीति पर कायम रही बल्कि अपने दोनों ही सहयोगियों में संतुलन बनाने की कोशिश की। पीएम मोदी की यह रणनीति कामयाब रही। भारत रूस से दोस्ती बनाए रखने के साथ-साथ यूरोप से मित्रता को नई ऊंचाईयों को ले जाने में सफल रहा।
ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक पीएम मोदी यूरोप यात्रा के दौरान फ्रांस में चुनाव जीतने वाले राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने भारतीय प्रधानमंत्री का गले लगाकर स्वागत किया। वहीं जर्मनी की यात्रा के दौरान जर्मन चांसलर ओलाफ श्चोल्ज ने अपने ‘सुपर पार्टनर’ नरेंद्र मोदी का दिल खोलकर स्वागत किया। यही नहीं ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने अपने खास दोस्त पीएम मोदी की जमकर तारीफ की। यूरोप के इन दिग्गज नेताओं ने पीएम मोदी की ऐसे समय पर तारीफ की जब यूक्रेन में पुतिन के हमले के कारण रूस से रिश्ता तोड़ने को लेकर भारत पश्चिमी देशों के निशाने पर था।
भारत को चीन के भूराजनीतिक विकल्प के रूप में देखा जा रहा
एक भारतीय अधिकारी ने कहा, ‘हर कोई यह तथ्य जानता है कि भारत में राजनीतिक नेतृत्व बेहद सहज है।’ उनका इशारा भारत की राजनीति में बीजेपी के प्रभुत्व की ओर था। उन्होंने कहा कि इन विदेशी नेताओं के पास सबसे अच्छा विकल्प यह है कि वे आपसी हित वाले मुद्दे पर बीजेपी के साथ संबंध जोड़ें और चिंताजनक मुद्दे पर पूरा दबाव बनाए रखें। दरअसल, भारत और रूस के बीच दशकों से हथियार से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आपसी सहमति रही है। भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती बढ़ी जरूर है लेकिन अभी भी भारत हथियारों के लिए बुरी तरह से रूस पर निर्भर है। यही वजह है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोट नहीं दिया था। भारत रूस के साथ सस्ते दर पर तेल भी खरीद रहा है। वह भी तब जब पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने के लिए कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं। हालांकि भारत का तेल आयात यूरोपीय देशों की तुलना में बहुत कम है।