
कानपुर। पहले कोरोना और अब महंगाई से जूता-चप्पल (फुटवियर) उद्योग ‘घिस’ रहा है। उद्योग बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है। कोरोना काल में दो साल स्कूलों की बंदी ने फैक्ट्रियों में तैयार रखे जूते खराब करा दिए और अब केमिकल से लेकर रैग्जीन तक की दोगुनी कीमत की वजह से कारोबारी निर्माण की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। बाजार में अब बच्चों के स्कूली जूते बहुत सीमित ही आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में फुटवियर उद्योग की छोटी-बड़ी करीब 70 इकाइयां थीं। इनमें करीब 30 प्रतिशत सिर्फ स्कूली जूते ही बनाती थीं जबकि बाकी स्कूली जूतों के साथ महिलाओं व पुरुषों के जूते-चप्पल बनाती थीं। कोरोना संक्रमण बढऩे की वजह से पहले लाकडाउन में स्कूल बंद रहे, अगले दौर में भी नहीं खुले और तैयार रखे जूते खराब हो गए। कारोबारी बताते हैं कि अगर दो साल तक जूते रखे रहें तो सोल और अपर चटक जाते हैं। पालिश आदि होने से उनमें नमी बनी रहती है। कोरोना काल बीतने के बाद पेट्रो उत्पाद की कीमतें बढऩे के बाद प्लास्टिक दाना, केमिकल सभी की कीमतें तेजी से बढ़ गईं और हालात उद्योगों के प्रतिकूल होते गए।
बढ़े जीएसटी ने दी गहरी चोट
कारोबारियों का कहना है कि पहले फुटवियर पर पांच प्रतिशत गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लगता था लेकिन, अब 12 फीसद लगता है। लागत बढ़ी तो उसका भी असर बिक्री पर पड़ा। इसे कम किया जाए तो कारोबारियों और आमजन को राहत मिल सकती है।