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कानपुर में भिखारी गैंग की यातनाओं के शिकार सुरेश मांझी का आरोपियों से पुलिस ने आमना-सामना कराया। राज और आशा ने जैसे ही अपनी जुबान खोली, आवाज सुनते ही सुरेश चौंक गया।

दहशत में आ गया। तुरंत उनको पहचान लिया। पुलिस साक्ष्य के तौर पर यही देखना चाहती थी। सुरेश ने पुलिस को बताया भी कि यही लोग हैं, जिन्होंने उसकी जिंदगी नर्क बना दी। फरार आरोपी विजय की मां को भी उसके सामने ले गए। उसको भी सुरेश आवाज से पहचान गया।
सुरेश इस समय हैलट में भर्ती है। एक आंख की रोशनी पूरी तरह नहीं आई है। दूसरी आंख का इलाज जारी है। उम्मीद है कि शायद रोशनी लौट आए। वर्तमान में उसको नहीं दिखाई दे रहा है। जब पुलिस ने आरोपियों को पकड़ा तो उनकी शिनाख्त करानी जरूरी थी। चूंकि सुरेश को दिखाई नहीं देता है, इसलिए आवाज से पहचान कराई गई। डीसीपी साउथ ने बताया कि सुरेश ने राज नागर, उसकी मां आशा व विजय की मां की आवाज आसानी से पहचान ली।
बोला…यही सब हैं साहब, जिन्होंने मेरा ये हाल किया
सुरेश को जब पता चला कि आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं, तो उसको सुकून मिला। उसने पुलिसकर्मियों से कहा कि साहब यही सब लोग हैं, जिन्होंने मेरा ये हाल किया। इतना तड़पाया, प्रताड़ित किया कि जिंदा रहने की उम्मीद नहीं थी। पता नहीं कैसे मेरी सांसें चलती रहीं। ये बातें सुनकर आरोपी खामोश रहे, क्योंकि उनकी करतूतें उजागर हो रही थीं।
आरोपियों ने बताया कि विजय ने अपने घर पर काफी दिनों तक सुरेश को रखा था। तब उसकी बहन तारा जड़ीबूटी लाती थी। उसमें से कोई तरल पदार्थ सुरेश की आंखों में डालती थी। धीरे-धीरे सुरेश की आंखों की रोशनी चली गई। पुलिस अब तारा की भूमिका की जांच कर रही है।
30 अक्तूबर को शहर में छोड़ा था
राज ने बताया कि दिल्ली के नागलोई में सुरेश को रखा था। फुटपाथ पर सुलाते थे। सुबह होते ही भीख मंगवाने के लिए सड़क पर, तो कभी चौराहे पर छोड़ देता था। शाम को वापस ले आता था। जो पैसे मिलते थे वह उसे खुद रख लेता था। जब तबीयत खराब हुई, तो इलाज शुरू कराया। पैसे अधिक लगने पर 30 अक्तूबर को कानपुर लाकर छोड़ दिया था।