भारतीय सेना ने चीन से निपटने के लिए बढ़ाई ताकत, PAK सीमा से पूर्वोत्‍तर भेजी गईं 6 डिवीजन

सेना ने चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया

उत्तरी सीमाओं पर ध्यान किया केंद्रित

ज्ञान प्रकाश, विशेष संवाददाता

दिल्ली।चीन से निपटने के लिए भारतीय सेना अब पहले से ज्यादा चौकस हो गई है. सेना ने चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है. अब बॉर्डर पर ज्यादा सतर्कता बरती जाएगी.

चीन सीमा की देखभाल पर ज्यादा अलर्ट-

चीन की तरफ से किसी भी तरह के दुस्साहस का जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी अतिरिक्त छह डिवीजन तैनात की है. इसके लिए सैनिकों को दूसरे अहम मोर्चो से बुलाया गया है. इनमें लद्दाख में पाकिस्तान के मोर्चे पर तैनात जवानों से लेकर पूर्वोत्तर में आतंकवाद रोधी अभियानों में जुटे सैनिक शामिल हैं.

आपको बतादे की सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने अपनी पहली यात्रा में चीन के साथ सीमा पर भारतीय सेना के सैनिकों की स्थिति और तैनाती का जायजा लिया था. लद्दाख सेक्टर में दो साल पहले चीनी सेना से झड़प हुई थी. इसके बाद शुरू हुई परेशानी को देखते हुए सेक्टर में काउंटर टेररिस्ट राष्ट्रीय राइफल फोर्स (एक डिवीजन के बराबर) की अतिरिक्त तैनाती के साथ 3 डिवीजन को मजबूत किया गया है.

पाकिस्तान की सीमा के साथ पूर्वोत्तर में आतंकरोधी अभियान में तैनाती में भी बदलाव किया जा रहा है. उत्तरी सीमा पर जो छह डिवीजन तैनात की गई हैं, इनमें से तीन पाकिस्तान की सीमा पर तैनात थीं.

उत्तरी सीमाओं पर ध्यान केंद्रित-

भारतीय सेना ने उत्तरी कमान को मजबूत करने के लिए आरक्षित बलों के रूप में लद्दाख सेक्टर की देखभाल के लिए वन स्ट्राइक कोर पर दो डिवीजन भी नियुक्त किए हैं. वन स्ट्राइक कॉर्प्स पहले पूरी तरह से पाकिस्तान के मोर्चे पर केंद्रित थी, लेकिन अब यह पूरी तरह से उत्तरी सीमाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है.

चीन सीमा की देखभाल पर ज्यादा फोकस-

पूर्वी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए 17 स्ट्राइक कोर अब वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पूर्वी क्षेत्रों के लिए पूरी तरह तैयार है और इसके जिम्मे पूरे पूर्वोत्तर की देखभाल है. असम में सेना ने आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे डिवीजन को वहां से हटाकर चीन सीमा की देखभाल करने के लिए लगा दिया है.

भारतीय सेना ने चीनी सेना को एक संदेश दे दिया है कि अब यथास्थिति को बदलने के लिए कोई अन्य एकतरफा हरकत न करे, क्योंकि भारत इसके लिए पहले से कहीं अधिक तैयार है.

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