
यूक्रेन पर हुए रूस के हमले ने समूचे यूरोप का समीकरण बदलकर रख दिया है। नाटो के मुद्दे पर यूक्रेन को निशाना बनाए जाने के बाद यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा को लेकर खासा चिंतित दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि फिनलैंड और स्वीडन ने रूस के विरोध और चेतावनी को दरकिनार कर इसकी सदस्यता लेने में रूचि दिखाई है। इसके लिए स्वीडन को केवल अपनी पार्लियामेंट से औपचारिक मंजूरी लेने के बाद विदेश मंत्री की तरफ से इस आवेदन पर साइन कर दिए गए हैं।
तुर्की का विरोध
हालांकि तुर्की इन दोनों ही देशों को नाटो की सदस्यता दिए जाने के खिलाफ है। तुर्की का कहना है कि इन दोनों देशों का आतंकी संगठनों के प्रति रवैया बेहद गोल-मोल रहा है। इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। इन दोनों देशों को सदस्यता दिए जाने पर नाटो पहले ही कह चुका है कि इसमें करीब एक वर्ष का समय लग सकता है। इस लिहाज से इसकी सदस्यता लेने की प्रक्रिया को भी जानलेना बेहद जरूरी है
सदस्यता लेने का ये है पूरा प्रोसेस
सबसे पहले सदस्यता लेने वाला देश नाटो को इसके लिए आवेदन करता है। ये आमतौर पर किसी देश की सरकार द्वारा एक पत्र के रूप में होता है। इसके बाद इस आवेदन पर नाटो के सदस्य मिलकर नॉथ एटलांटिक काउंसिल में चर्चा करते हैं। एनएसी ही इस बात का फैसला करती है कि क्या इस आवेदन पर आगे बढ़ा जा सकता है या नहीं। इसके अलावा एनएसी ही ये तय करती है कि सदस्यता देने के लिए क्या रास्ता चुना जाए। ये इस बात पर भी तय होता है कि सदस्यता के लिए आवेदन करने वाला देश को राजनीतिक, मिलिट्री या कानूनी स्तर पर सदस्यता देने पर विचार किया जाए। इसमें ये भी देखा जाता है कि सदस्यता लेने वाला देश नाटो में क्या योगदान दे सकता है।
आवेदन करने वाले देश सदस्य बनने के बाद इसके तहत बनने वाली प्लानिंग और दूसरी कानूनी प्रक्रियाओं में हिस्सा लेता है। नाटो के तहत होने वाली हर बैठक की जानकारी को सभी सदस्य देशों को साझा किया जाता है। इसके बाद यदि किसी सदस्य देश को इस पर कोई संदेह होता है या कोई सवाल होता है तो उस पर बैठक में विचार किया जाता है। इसी बीच आवेदन करने वाले देश की तरफ से विदेश मंत्री द्वारा पत्र भेज कर बताया जाता है कि जो सवाल उठे हैं उनका समाधान करने के लिए वो काम करेगा।