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देश के इन 20 इलाकों में तेज भूकंप की आशंका, रिक्टर स्केल पर 8 तक जा सकता है पैमाना

Network Today

तुर्किए मे आए हालिया भूकंप के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिक भविष्य में के लिए आशंका जता रहे हैं. भारत में भी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने हिमालय में 20 ऐसे क्षेत्रों का अनुमान लगाया है, जहां कभी भी 8 या इससे ज्यादा रिएक्टर स्केल से भूकंप आ सकते हैं. बता दें कि 5 या उससे थोड़ी ज्यादा तीव्रता के भूकंप से यहां बिल्डिंग हिल जाती है. ऐसे में अगर 8 तीव्रता का भूकंप आ जाए तो हम इससे होने वाले नुकसान की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं. तुर्किए में आए भूकंप की तीव्रता 7.9 थी.

संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉक्टर आरजे पेरूमल के मुताबिक करीब 2000 किलोमीटर लंबे हिमालयी क्षेत्र में बड़े भूंकप की आशंका वाले 20 और भारत में करीब आधा दर्जन के करीब क्षेत्र हो सकते हैं.

उत्तराखंड के रामनगर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और असम क्षेत्र में ऐसे भूकंपों की आशंका सबसे ज्यादा है. इसकी वजह इन क्षेत्रों की धरती के नीचे चल रहे तनाव के बावजूद ऊर्जा का बाहर न निकल पाना है. डॉक्टर पेरूमल का कहना है कि रामनगर क्षेत्र में साल 1255 में आठ से नौ रिएक्टर का भूंकप आया था. इसके बाद यहां कोई बड़ा भूंकप दर्ज नहीं किया गया.

इसी तरह भूगर्भीय संरचना वाले नेपाल में साल 1255 में बेहद शक्तिशाली भूंकप (8.0 से 9.0 ) आया था. इसके बाद 1831, 1934 और 2015 में भारी भूंकप आ चुका है. एक ही माइक्रो सेस्मेसिटी बेल्ट में पड़ने वाले हिमाचल के कांगड़ा में भी 1905 के भूंकप ( 7.8 रिएक्टर स्केल) के बाद कोई भूंकप नहीं आया.

सेंट्रल नेपाल और देश का असम प्रांत भी एक बेल्ट में आता है. यहां कम अंतराल में छोटे भूकंप के साथ ही बड़े भूकंप भी आते हैं. नेपाल में साल 1255 के भूकंप को छोड़कर पिछले तीन बड़े भूकंप का अंतराल 51 से 81 साल के बीच रहा और इसी रूट के असम में पिछले 2 बड़े भूकंप 51 से 81 साल के बीच आए हैं.

भूकंप क्यों आते हैं

इसका जवाब जानने के लिए सबसे पहले आपको धरती की संरचना समझनी होगी. पूरी धरती 12 टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है. इन टेक्टोनिक प्लेटों के नीचे लावा मौजूद है. ये 12 प्लेटें इन्ही लावों पर तैरती हैं. जब लावा इन प्लेटों से टकराता है तो जो ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप कहते हैं.

इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पृथ्वी की सबसे बाहरी परत जो 12  प्लेटों में विभाजित है. ये प्लेटें लगातार शिफ्ट होती रहती हैं. शिफ्ट होते समय कभी-कभी ये प्लेटें एक दूसरे से टकरा जाती हैं. जिससे भूकंप का एहसास होता है. इससे जमीन भी खिसकती है.

करोड़ों साल पहले भारत एशिया के करीब नहीं था, लेकिन जमीन पर आए भूकंप की ही वजह से भारत हर साल करीब 47 मिलीमीटर खिसक कर मध्य एशिया की तरफ बढ़ रहा है. करीबन साढ़े पांच करोड़ साल से पहले हुई एक टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हिमालय का निर्माण हुआ.

तब भारत एक बड़ा द्वीप था. ये  द्वीप समुद्र में 6,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक तैरता हुआ यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट से टकराया और हिमालय का निर्माण हुआ. हिमालय दुनिया की सबसे कम उम्र की पर्वत श्रृंखला है.

वैज्ञानिकों के अंदाजे के मुताबिक भूगर्भीय बदलाव की वजह से ही हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति अति संवेदनशील बनते जा रहे हैं. इस वजह से दोनों प्लेटें एक दूसरे पर लगातार जोर डाल रही है, इसकी वजह से क्षेत्र में अस्थिरता बनी हुई है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर हिमालयी क्षेत्र की धरती की प्लेटें स्थिर क्यों नहीं हो रही हैं ?

इसका जवाब जानने के लिए ‘अंडरवर्ल्ड कोड’ नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों साल पहले हुई उस टक्कर को समझने की कोशिश अब भी जारी है.

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