जीत के लिए फिर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर बसपा, 2 पंचवर्षीय से झोली खाली

कानपुर। बहुजन समाज पार्टी के लिए जिले की भूमि बंजर सी हो गई है। तमाम कोशिशों के बाद भी बसपा यहां की 10 में से एक भी सीट पिछले दो चुनावों में नहीं जीत सकी है। पार्टी को एक अदद जीत की तलाश है। इसलिए पार्टी ने इस चुनाव में फिर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को आजमा रहा है। अब देखना है कि पार्टी के रणनीतिकारों का यह दांव कितना सफल होता है। पूरी तरह से खिसक चुकी राजनीतिक जमीन को वापस पाने के लिए बसपा ने इस बार हर सीट पर नए चेहरे पर ही दांव लगा रही है। 2007 में चौबेपुर, बिल्हौर और घाटमपुर सीट जीतने वाली बसपा के पुराने चेहरे या तो पार्टी से दूर जा चुके हैं या फिर दूसरे दलों में हैं।

2007 में बसपा पांच सीटों पर जीत दर्ज कर लेती, लेकिन कल्याणपुर और सरसौल सीट पर उसके उम्मीदवार जीत की दहलीज पर पहुंचकर हार गए थे। कल्याणपुर में भाजपा की प्रेमलता कटियार ने बसपा के निर्मल तिवारी को 674 वोटों से हराया था सरसौल सीट पर अनंत मिश्र अंटू पर सपा की अरुणा तोमर ने पटखनी दी थी। जीत की दहलीज तक पहुंच कर अंटू 349 वोटों से हार गए थे। अन्यथा पार्टी के खाते में चौबेपुर, बिल्हौर और घाटमपुर के साथ ही कल्याणपुर और सरसौल सीट भी होती। अब सरसौल और चौबेपुर सीट का अस्तित्व खत्म हो गया है। इस चुनाव के बाद बसपा के लिए कानपुर की भूमि उपजाऊ नहीं रही। पार्टी 2012 के चुनाव में भी घाटमपुर सीट जीत जाती लेकिन सरोज कुरील सपा के इंद्रजीत सरोज से सात सौ वोटों से हारीं तो बिठूर सीट पर 671 वोट से सपा के मुनींद्र शुक्ला से आरपी कुशवाहा हार गए थे। अन्य सीटों पर तो पार्टी के उम्मीदवारों की हार का अंतर काफी था। अब पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम कर रही है। इसीलिए बिठूर सीट पर यादव बिरादरी के रमेश यादव, कल्याणपुर सीट अरुण मिश्रा, किदवई नगर सीट पर मोहन मिश्रा, कैंट में मोहम्मद सफी खान को मैदान में उतारा है। बिल्हौर और घाटमपुर सीट सुरक्षित है। ऐसे में वहां अनुसूचित जाति के उम्मीदवार मैदान में हैं। अन्य सीटों पर भी पार्टी यही फार्मूला अपनाएगी।

1993 में आर्यनगर सीट जीती थी बसपा : बसपा शहर की सीटों पर जीत के लिए अर्से से प्रयासरत है, लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है। पार्टी ने 1993 में जब सपा और बसपा का गठबंधन हुआ तो आर्यनगर सीट से पार्टी उम्मीदवार महेश वाल्मीकि ने चुनाव जीत लिया था। इसके बाद किसी सीट पर भी कभी हाथी नहीं दौड़ा।

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