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कानपुर। आंगनबाडी कार्यकत्री एक ऐसा महत्त्वपूर्ण पद है जो 1000 से 1200 की आबादी के बीच मे कार्य करती है। जो महिला एवं बाल विभाग पुष्टाहार विभाग की नींव कही जाती है और भारत देश के नौनिहालों का कुपोषण दूर करती आ रही है। कार्य.भी जाने किसी महिला के गर्भवती होने पर आंगनवाडी के कार्य की शुरूआत हो जाती है।उस महिला के खान-पान से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक की सभी गतिविधियों पर ध्यान रखने से लेकर महिला को संस्थागत प्रसव करवाने के लिये उसको व उसके परिवारजनो को प्रेरित करते रहना,बच्चे के जन्म होने पर उसकी देखभाल वजन,टीकाकरण,कुपोषण स्तर तक सभी की गतिविधियों को अलग अलग रजिस्टरो मे दर्ज करना। तीन वर्ष का बच्चे के होने पर उसको शालापूर्व शिक्षा देना,उसको पुष्टाहार देना,वजन करना, कुपोषण स्तर निकालना,टीकाकरण आदि कार्य सम्मिलित है।और। वो भी मात्र 4000/रू० मे।जिसमे से 3000रू० केन्द्र सरकार देती है और 1000रू० राज्य सरकार।
और इन सबके अलावा पल्स पोलियो, बी.एल.ओ. कार्य, जनगणना, आर्थिक गणना,पशुगणना,पेंशन (विधवा,विकलांग, वृद्धावस्था) सत्यापन,पारिवारिक आर्थिक लाभ योजना,राशन कार्ड सत्यापन, आधार कार्ड बनवाने और न जाने कितने विभागो के कार्यो का पुलिंदा इन महिला कर्मचारियों पर थोप दिया जाता है। मगर आज तक न तो किसी सरकार ने इनके मानदेय मे कोई सम्मानजनक वृद्धि कि और न ही आज तक इन्हे सरकारी कर्मचारी घोषित किया। सन् 1972 से इस विभाग की शुरुआत हुई और आंगनबाडियो से सरकार हर तरह के सरकारी कार्यो को करवाती रही है सभी सरकारी योजनाओं का संचालन इन वर्करों के बिना सुचारू रूप से चलाना असम्भव है। आज 40 बर्षो से भी अधिक समय गुजर चुका है मगर किसी भी सरकार ने इनकी दयनीय स्थिति के बारे मे विचार नही किया।इस कमरतोड़ महगाई मे भी यह वर्कर मात्र 4000/ रू० मे अपने परिवार का भरणपोषण और बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से लेकर अन्य खर्चे भी इसी से पूरे करती है। इतने वर्षों मे न जाने कितनी सरकारे आयी और गई मगर किसी ने भी इनकी आर्थिक स्थिति मे कोई सुधार नही किया।आज हालत यह है कि आंगनबाडियो का परिवार भुखमरी की कगार पर है।। सरकार की दमनकारी नीतियो का फायदा अन्य विभागों ने भी उठाना शुरु किया और अपने अपने विभागों के कार्य भी आंगनबाडियो से करवाना शुरू कर दिया और पारिश्रमिक खुद डकारने लगे। हालत इतने बदतर है कि आज आंगनबाडियो को एक मनरेगा मजदूर से भी कम मानदेय मिल रहा है और कार्य लेखपालों के बराबर करवाये जा रहे है। सरकारे आयी और गयी मगर इनके हालातो पर कोई परिवर्तन नही हुआ ..अगर परिवर्तन हुआ तो सिर्फ इनके यूनिफार्म के रंगो मे..बसपा काल मे नीली साडी,सपा काल मे हरी और अब भाजपा ने गुलाबी रंग कर दिया सिर्फ अपनी पार्टी का ऐजेण्डा बनाने के लिये। चुनाव पूर्व बहुत घोषणाएं कि गयी आंगनबाडियो के लिये और चुनाव जीतने के बाद लाठीचार्ज, मानदेय कटौती आदि न जाने कितने तरह से शोषित की जाती रही है।
आज मोदी जी के डीजिटल इंडिया तक के सफर मे इन महिला कर्मचारियों के साथ न जाने कितनी आपदाएं आयी मगर सरकार के कानो मे जूं तक नही रेंग रही है। और सबसे बडी विडम्बना तो यह है कि आंगनबाडियो को रिटायर्ड करना भी सरकार भूल गयी है।आजीवन सरकारी बंधुवा मजदूर बनाकर रखा है सरकार और विभागीय अधिकारियों ने। महिला आंगनबाडी कर्मचारियों के लिये महिला सश्कत्तीकरण की बात करना बेमानी साबित होगा।