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कानपुर का ऐतिहासिक गंगा मेला क्रांति से जुड़ा है। कनपुरियों ने अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ रंगों को हथियार बनाकर फिरंगियों से 5 दिनों तक लड़ाई लड़ी। 1942 में हुआ यह घटनाक्रम 81 वर्ष बाद भी गंगा मेला के उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। अनुराधा नक्षत्र के दिन कानपुर में सोमवार को हटिया गंगा मेला का उत्सव मनाया जाएगा। इसकी तैयारियां जोरों पर है। इस दिन कानपुर में होली से भी ज्यादा रंग खेला जाता है।
राष्ट्रगान और तिरंगा फहराने के बाद गंगा मेला महोत्सव की शुरुआत होती है। सोमवार सुबह 8 बजे से पार्क में हुरियारे जुटेंगे। सबसे पहले राष्ट्रगान गाकर क्रांतिवीरों को नमन किया जाएगा। राष्ट्रीय ध्वज को सैल्यूट करने के बाद होली की मस्ती शुरू होगी। इसके बाद रंगों का ठेला निकलता है।
हुरियारे भैंसा ठेला, ट्रैक्टर ट्राली, टेम्पो और ऊंट पर सवार होकर रंग बरसाते निकलते हैं। रंग का ठेला हटिया, गया प्रसाद लेन, मूलगंज, शिवाला, रामनारायण बाजार चौराहा, कमला टावर, चटाई मोहाल, सिरकी मोहाल, बिरहाना रोड, नयागंज, जनरलगंज होते हुए हटिया लौटेगा।
आजादी के समय से शुरू हुई थी परंपरा
कानपुर मे सात दिनों तक खेली जाने वाली होली का इतिहास ब्रिटिश समय का है, जब एक घटना के विरोध में शुरू हुई ये परंपरा आज तक लगातार चल रही है। देश भर में होलिका दहन और रंगोत्सव के साथ समाप्त हो जाने वाला ये पर्व कानपुर शहर में पूरे सात दिन तक चलता है और गंगा मेला के दिन जाकर समाप्त होता है।
बताया जाता है कि 1942 में अंग्रेजों ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद कानपुर के युवा ने विरोध स्वरूप जमकर होली खेली। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उनको जेल में डाल दिया। यह सूचना शहर भर में पहुंची, तो शहर में बड़े स्तर पर विरोध शुरू हो गया।