
नई दिल्ली। कर्नाटक में विधान सभा 2018 के लिए जनता का फैसला सामने आ चुका है। कर्नाटक के नाटकीय परिणामों ने सियासी दलों की बेचैनी बढ़ा दी है। जनता ने अपना भरोसा नरेंद्र मोदी पर जताया लेकिन भाजपा बहुमत के आकंड़े से कुछ कदम दूर रह गई है। वहीं दूसरे नम्बर की पार्टी कांग्रेस ने जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव रख सूबे की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है।
कांग्रेस और जेडीएस का गठजोड़ बहुमत के लिए 113 सीटों से ज्यादा हो रहा है। कर्नाटक में हो रहे इस नाटक के मुख्य नायक अब राज्यपाल वजुभाई वाला बन गए हैं। भाजपा और जेडीएस के नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर अपनी—अपनी सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश किया हैं। बुधवार को राज्यपाल के निर्णय के बाद सरकार बनाने को लेकर चल रहे संशय पटाक्षेप होगा।
भाजपा का कहना है कि संविधान के मुताबिक सबसे पहले सबसे बड़े दल को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया जाना चाहिए, हालांकि जेडीएस ने कांग्रेस के समर्थन वाला पत्र प्रस्तुत कर बहुमत होने का दावा पेश किया है। उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि राज्यपाल अगर जेडीएस—कांग्रेस को सरकार बनाने का आमंत्रण नहीं देते हैं तो वे कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
वहीं कांग्रेस के लिंगायत समुदाय के कुछ विधायकों का भाजपा के संपर्क में होने की भी बात कही जा रही है। फिलहाल कर्नाटक में जोड़—तोड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। बुधवार दोपहर तक राज्यपाल के निर्णय के बाद स्थिति साफ हो सकेगी।
भाजपा बनी सबसे बड़ी पार्टी पर घटा वोट प्रतिशत
कर्नाटक में भाजपा भले ही 104 सीटें जीत कर सबसे बड़ा दल होने का दावा करे लेकिन इस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत घटा है। इस चुनाव में उसे 36 फीसद मतदाताओं का साथ मिल सका। वहीं नुकसान के बाद भी कांग्रेस को 38 प्रतिशत मत मिले हैं। जेडीएस का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा और 19 फीसद वोट के साथ 38 सीटों पर कब्जा जमाते हुए सत्ता की चाबी भी अपने हाथ में कर ली है।