
इस सप्ताह मोल्दोवा और यूक्रेन की सीमा पर स्थित रूसी प्रांत ट्रांसनिस्टिया में और यूक्रेन की उत्तरी सीमा से लगे रूसी शहर बेल्गोरोद के शस्त्रगार में धमाके हुए। अनुमान है ये धमाके यूक्रेनी सेना की मिसाइलों से हुए। यूक्रेन ने तो इस अनुमान की पुष्टि नहीं की, पर पुतिन ने रोषभरी धमकी देते हुए कहा, ‘जो भी तीसरा देश लड़ाई में हस्तक्षेप करेगा और हमारे लिए सामरिक खतरे खड़े करेगा, उसे बिजली जैसा कड़क जवाब दिया जाएगा।’ उन्होंने अपनी धमकी को स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारे पास ऐसे शस्त्रस्त्र हैं, जिनके होने का दावा कोई और नहीं कर सकता और जरूरत पड़ी तो हम उनका प्रयोग करने से नहीं चूकेंगे। पुतिन की धमकी से समरनीति और कूटनीति के गलियारों में खलबली सी मच गई है।
समरनीति के विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध के किसी भी मोर्चे पर अपेक्षित कामयाबी न मिलने से पुतिन बिफर गए हैं। उनकी धमकी का मतलब यही निकाला जा रहा है कि वह लड़ाई खत्म करने के लिए लड़ाई बढ़ाने की रणनीति पर चल रहे हैं। यदि नाटो देशों ने यूक्रेन सेना को नए हथियार देना जारी रखा तो वह सीमित दायरे में मार करने वाले टैक्टिकल परमाणु हथियारों का प्रयोग करने की हद तक जा सकते हैं। लड़ाई के लंबा खिंचने के साथ-साथ बढ़ती परमाणु धमकियों की दो वजहें बताई जा रही हैं।
एक तो रूसी सेना को उसकी धाक और उम्मीद के मुताबिक कामयाबी हासिल नहीं हो रही है। दूसरे, सीमित दायरे में मार कर सकने वाले परमाणु हथियारों के मामले में नाटो देश रूस के सामने कहीं नहीं टिकते। शीतयुद्ध के अंत और सोवियत संघ के बिखरने तक सबसे शक्तिशाली और सबसे अधिक परमाणु हथियार अमेरिका के पास थे। उन्हें चलाने वाली सबसे शक्तिशाली और बेहतर मिसाइलें भी उसी के पास थीं, लेकिन शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने अपनी वरीयता पर ध्यान नहीं दिया, जबकि पुतिन के नेतृत्व में रूस ने उन्हें बनाना जारी रखा। 1994 की बुडापेस्ट संधि के बाद यूक्रेन के परमाणु अस्त्र भी रूस को मिल गए थे।
परमाणु हथियारों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में रखा जा सकता है। लंबी दूरी से मार करने वाले, जिन्हें बैलिस्टिक मिसाइलों पर लगाकर वार किया जाता है। अमेरिका के पास 5,500 सामरिक परमाणु अस्त्र हैं, जबकि रूस के पास इस समय 6,000 सामरिक परमाणु अस्त्र हैं। असली असंतुलन सीमित दायरे में मार करने वाले परमाणु अस्त्रों का है, जो 300 किमी की दूरी से चलाए जा सकते हैं। इनका प्रयोग दुश्मन के टैंकों और सेना की व्यूह रचना नष्ट करने के लिए किया जाता है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ हर साल हजारों ऐसे परमाणु अस्त्र बनाते थे।